धरा की पुकार
रचयित्री - स्तुति राजीव
देश भर में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है, पर स्वच्छता सिर्फ प्रशासन का कर्तव्य नहीं और न ही प्रशासन इस अभियान को अकेले सफल कर सकता है। इस अभियान को आगे बढ़ाना व स्वच्छता को जीवन का अभिन्न अंग बनाना हम सभी का कर्तव्य है ।
वातावरण में बढ़ रही अस्वच्छता, व इस विषय की ओर लोगों की लापरवाही पर क्या कहती है धरती?
कभी करुणा से पुकार कर और कभी चेतावनी से फटकार कर स्वच्छता के महत्व की ओर जागरूक करती धरा की पुकार -स्तुति राजीव की रचना पढ़ें -
धरा की पुकार
तुम सन्तान मेरी, मैं जननी हूँ,
पग पग पर, हर क्षण सहचरनी हूँ।
ठहरो! मेरी एक पुकार सुनो!
अपने ही लिये न जंजाल बुनो।।
अशुद्धि की आग में धधक रही मैं,
तुम्हारी लापरवाही भुगत रही मैं।
प्रकृति पर अब और न प्रहार करो,
बचाओ जीवन, न संघार करो।।
मेरा आँचल कतवार से पाट रहे,
फिर आपस में जिम्मेदारियाँ बाँट रहे।
अरे! धरती माता बोल पुकारा था,
क्या वह सिर्फ कहने को ही नारा था?
मैंने क्षण-क्षण भर-भर स्नेह से तार दिया,
फिर तुमने क्यों कर्तव्य अपना दुत्कार दिया?
अरे! अब भी समय, अपना आज सवाँरो तुम,
करो आरम्भ, न औरों की राह निहारो तुम।।
करी दूषित वायु, है दूषित भूमि,
अब तो दूषित मेरा जल भी है।
तुम आज ही इनसे जूझ रहे!
कुछ करो! अभी बाकी कल भी है।।
सुचम का पाठ पढ़ाया था,
सफाई दायित्व है, समझाया था।
फिर क्यों दूषण का विषपान दिया?
स्वच्छता का आभूषण ले अपमान किया।।
स्वच्छता कर्म तुम्हारा, फिर स्मरण कराती हूँ,
जागो तुम! एक बार फिर चेताती हूँ।
जो दिया कुदरत ने वह अनन्त नहीं,
अब न जागे तो है अन्त यही।।
अपना ही गर्त न खोदो अब,
जो काट दिये, फिर बो दो अब।
ठानो कि श्रृंगार भूमि का करना है,
परमार्थ हेतु स्वच्छता भृंगार जड़ना है।।
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