कौशल भारत
रचयित्री - स्तुति राजीव
कौशल भारत का मंतव्य है कि हर कोई अपनी कला को पहचाने, उसके महत्व को समझे।
विवाहदिषु यज्ञषु गृहारामविधायके।
सर्वकर्मसु संपूज्यो विश्वकर्मा इति श्रुतम॥
सर्वकर्मसु संपूज्यो विश्वकर्मा इति श्रुतम॥
तात्पर्य है कि विवाह हो, यज्ञ हो, या कोई भी कार्य हो, उन विश्वकर्मा को नमन जिनके कारण यह सब संभव होता है। अर्थात हर उस कलाकार को नमन, उसकी कला को नमन, जो हम सभी के जीवन में पग-पग पर आवश्यक है।
हमारी संस्कृति प्राचीन काल
से ही हमें
कला का महत्व
समझती रही है,
गुलामी के दौर
में, या मशीनीकरण
के चलते वह
समझ कहीं खो
गयी।
अगर गौर करें तो हमें हमारी परम्पराओं द्वारा ही कौशल का सम्मान सिखाया जाता रहा है। जैसे विजयादशमी पर शस्त्रों की पूजा, अक्षय तृतीया पर हमारे कृषिओं द्वारा उनके औज़ारों की पूजा, विश्वकर्मा पूजा पर सभी कलाकार जैसे, लोहे का काम करने वाले लोग, मिट्टी का काम करने वाले लोग, स्वर्ण का काम करने वाले लोग, या अन्य किसी भी व्यवसाय के लोग, वे सभी उस दिन अपने कौशल को पूजते हैं, जिससे उनका भरण-पोषण होता है। महाभारत के एक श्लोक में हमें बताया गया है कि,
अगर गौर करें तो हमें हमारी परम्पराओं द्वारा ही कौशल का सम्मान सिखाया जाता रहा है। जैसे विजयादशमी पर शस्त्रों की पूजा, अक्षय तृतीया पर हमारे कृषिओं द्वारा उनके औज़ारों की पूजा, विश्वकर्मा पूजा पर सभी कलाकार जैसे, लोहे का काम करने वाले लोग, मिट्टी का काम करने वाले लोग, स्वर्ण का काम करने वाले लोग, या अन्य किसी भी व्यवसाय के लोग, वे सभी उस दिन अपने कौशल को पूजते हैं, जिससे उनका भरण-पोषण होता है। महाभारत के एक श्लोक में हमें बताया गया है कि,
विश्वकर्मा नमस्तेस्तु विश्वात्मा विश्व सम्भवः।
अर्थात- जिन विश्वकर्मा के कारण विश्व में सब कुछ संभव है, उनको नमन।
कौशल भारत का आह्वान करती स्तुति राजीव कि कविता-
कौशल भारत
भारत का नव निर्माण करें हम,
जन-जन हुनर विभोर करें।
चलो शिखर की ओर चलें॥
जन-जन हुनर विभोर करें।
चलो शिखर की ओर चलें॥
अपात्रता का एकांत भंग हो,
कौशल का हम शोर करें।
चलो शिखर की ओर चलें॥
छठे अक्षमता का अंधियारा,
प्रशिक्षण कि हम भोर करें।
चलो शिखर की ओर चलें॥
आत्मनिर्भर भारत के पथ पर,
उन्नति उद्घोष दसों ओर करें।
चलो शिखर की ओर चलें॥
सरस्वती की छाया के संग,
जीवन में विश्वकर्मा का आशीष बने।
चलो शिखर की ओर चलें॥
परवरिश के हर धागे में,शिक्षा रत्न संग
कला की मुक्ता जोड़ चलें।
चलो शिखर की ओर चलें॥
भारतीय कौशल की आभा,
विस्तृत चहुँओर करें।
चलो शिखर की ओर चलें॥
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